इंडियन-अमेरिकन प्रोफेसर ने जीती मैक आर्थर की 4 करोड़ की फेलोशिप
वॉशिंगटन. भारतीय मूल के एक अमेरिकी ने 2015 मैक आर्थर 'जीनियस ग्रांट' की फेलोशिप जीती है। 41 साल के कार्तिक चंद्रन उन 24 मैक आर्थर फेलोज में शामिल हैं, जिन्हें 6,25,000 डॉलर (3.9 करोड़ रुपए) बतौर स्टाइपेंड दिया जाएगा। चंद्रन को ये फेलोशिप, वेस्ट वॉटर को फर्टिलाइजर, एनर्जी और क्लीन वॉटर में ट्रांसफार्म करने की दिशा में काम करने के लिए मिली है। बता दें कि चंद्रन कोलंबिया यूनिवर्सिटी में अर्थ एंड एन्वायरमेंटल इं जीनियरिंग में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। उन्होंने आईआईटी, रुड़की से ग्रैजुएशन की डिग्री ली थी।
मैक आर्थर फाउंडेशन ने क्या कहा?
शिकागो बेस्ड मैक आर्थर फाउंडेशन के मुताबिक, चंद्रन उन 24 टैलेंटेड लोगों में शामिल हैं, जिन्होंने एक्सेप्शनल ऑरिजनेलिटी और अपनी क्रिएटिविटी का डेमोन्सट्रेशन (प्रदर्शन) किया है।
फेलोशिप जीतने के बाद चंद्रन ने क्या कहा?
चंद्रन बताते हैं कि मैक आर्थर फेलोशिप जीतने को लेकर जब उन्हें कॉल आया, तब उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि इस खुशी को वे कैसे बयान करें। उन्होंने कहा, "मैं भारत से 24 घंटे की फ्लाइट के बाद न्यूयॉर्क पहुंचा ही था कि यह कॉल आया। मुझे यकीन ही नहीं हुआ कि मैंने क्या सुना।"
चंद्रन ने फेलोशिप को खुद के लिए बड़ा सम्मान बताया है। उन्होंने कहा कि वे पूरी जिम्मेदारी के साथ अपने काम को अंजाम देंगे। बता दें कि मैक आर्थर फाउंडेशन 1981 के बाद से अब तक 900 से ज्यादा लोगों को फेलोशिप दे चुका है। गौरतलब है कि चंद्रन के ग्लोबल नाइट्रोजन साइकिल और वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट को व्यापक तौर पर पहचान मिली है।
2005 में इंजीनियरिंग स्कूल ज्वॉइन करने वाले चंद्रन ने वॉटर इनवायरमेंट रिसर्च फाउंडेशन पॉल एल बुच अवॉर्ड (2010) भी जीता है। इसके अलावा वे 2009 में नेशनल साइंस फाउंडेशन करियर अवॉर्ड और 2007 में नेशनल एकेडमिक्स ऑफ साइंस फेलोशिप भी अपने नाम कर चुके हैं।
बता दें कि कोलंबिया ज्वॉइन करने से पहले चंद्रन ने न्यूयॉर्क के एक प्राइवेट इंजीनियरिंग फर्म मेटकैफ एंड एडी में 2001-04 तक सीनियर टेक्निकल स्पेशलिस्ट के तौर पर सेवाएं दीं। यहां उन्होंने वॉटर क्वॉलिटी के क्षेत्र में योगदान दिया।
वॉशिंगटन. भारतीय मूल के एक अमेरिकी ने 2015 मैक आर्थर 'जीनियस ग्रांट' की फेलोशिप जीती है। 41 साल के कार्तिक चंद्रन उन 24 मैक आर्थर फेलोज में शामिल हैं, जिन्हें 6,25,000 डॉलर (3.9 करोड़ रुपए) बतौर स्टाइपेंड दिया जाएगा। चंद्रन को ये फेलोशिप, वेस्ट वॉटर को फर्टिलाइजर, एनर्जी और क्लीन वॉटर में ट्रांसफार्म करने की दिशा में काम करने के लिए मिली है। बता दें कि चंद्रन कोलंबिया यूनिवर्सिटी में अर्थ एंड एन्वायरमेंटल इं जीनियरिंग में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। उन्होंने आईआईटी, रुड़की से ग्रैजुएशन की डिग्री ली थी।
मैक आर्थर फाउंडेशन ने क्या कहा?
शिकागो बेस्ड मैक आर्थर फाउंडेशन के मुताबिक, चंद्रन उन 24 टैलेंटेड लोगों में शामिल हैं, जिन्होंने एक्सेप्शनल ऑरिजनेलिटी और अपनी क्रिएटिविटी का डेमोन्सट्रेशन (प्रदर्शन) किया है।
फेलोशिप जीतने के बाद चंद्रन ने क्या कहा?
चंद्रन बताते हैं कि मैक आर्थर फेलोशिप जीतने को लेकर जब उन्हें कॉल आया, तब उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि इस खुशी को वे कैसे बयान करें। उन्होंने कहा, "मैं भारत से 24 घंटे की फ्लाइट के बाद न्यूयॉर्क पहुंचा ही था कि यह कॉल आया। मुझे यकीन ही नहीं हुआ कि मैंने क्या सुना।"
चंद्रन ने फेलोशिप को खुद के लिए बड़ा सम्मान बताया है। उन्होंने कहा कि वे पूरी जिम्मेदारी के साथ अपने काम को अंजाम देंगे। बता दें कि मैक आर्थर फाउंडेशन 1981 के बाद से अब तक 900 से ज्यादा लोगों को फेलोशिप दे चुका है। गौरतलब है कि चंद्रन के ग्लोबल नाइट्रोजन साइकिल और वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट को व्यापक तौर पर पहचान मिली है।
2005 में इंजीनियरिंग स्कूल ज्वॉइन करने वाले चंद्रन ने वॉटर इनवायरमेंट रिसर्च फाउंडेशन पॉल एल बुच अवॉर्ड (2010) भी जीता है। इसके अलावा वे 2009 में नेशनल साइंस फाउंडेशन करियर अवॉर्ड और 2007 में नेशनल एकेडमिक्स ऑफ साइंस फेलोशिप भी अपने नाम कर चुके हैं।
बता दें कि कोलंबिया ज्वॉइन करने से पहले चंद्रन ने न्यूयॉर्क के एक प्राइवेट इंजीनियरिंग फर्म मेटकैफ एंड एडी में 2001-04 तक सीनियर टेक्निकल स्पेशलिस्ट के तौर पर सेवाएं दीं। यहां उन्होंने वॉटर क्वॉलिटी के क्षेत्र में योगदान दिया।
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